"एक बैंकर की कलम से"

पूरे दिनभर शाखा का कार्य निबटा कर शाम को 45 किलोमीटर दूर अपने वाहन से मीटिंग के लिए निकले!
मीटिंग शुरू हुई और खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी,खाना भी आ चुका था और ठंडा पड़ना शुरू हो चुका था,वो मन्चूरियन की खुशबू बड़ा लालायित कर रही थी लेकिन साथ ही वापस 45 किलोमीटर दूर कार चलाकर ले जाने का खौफ भी अपना असर दिखा रहा था!
अंततः जब शरीर से प्राण छूटने को ही थे तभी मीटिंग का समापन हुआ और हमने उस ठंडे पड़ चुके भोजन को पूरी इज़्ज़त देते हुए ग्रहण किया और निकल पड़े उस सुनसान पड़ चुके अंधेरे रास्ते में जिस पर 80 से 100 की स्पीड में कार बस ऐसे चला रहे थे मानो हमने हमारा टर्म प्लान आज ही के दिन के लिए करवाया था!
कार जब चल रही थी तो हमने हमारी आंखों को ऐसे मुश्किल से फाड़ रखा था की बस कुछ समय और खुली रहो फिर तुम्हे वो स्लीपवेल का गद्दा नसीब होने वाला है और बस उस स्लीपवेल के गद्दे की आस में हमारी आंखों ने हमारा साथ दिया और साथ तो उस नीलगाय ने भी दिया जो बेचारी हमारी कार की गति से थोड़ा ज्यादा तेज़ निकल गयी अन्यथा हम या वो या हमारी कार किसी को तो अहसास हो ही जाता की "speed  thrills but kills".
रास्ते में चलते चलते ही तारीख बदल गयी और समय हो गया था 12:30 और हम घर भी पहुँच चुके थे,बस फिर खुद को एक ज़िंदा लाश की तरह बिस्तर पर गिराया लेकिन वो आंखे जिन्होंने रास्ते भर साथ दिया वो शिकायत करने लगी की "मालिक नींद कहाँ है"?
और हमारे पास कोई जवाब ना था बस पड़े रहे और सुबह कब हो गई पता ही नही चला!
अब बारी आई की बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करना है और उसे स्कूल छोड़कर आना है लेकिन हमारा शरीर जवाब दे चुका था की अभी इसे और आराम की जरूरत है और इसी के चलते आज बच्चा शिक्षा से दूर रहेगा!
बच्चे को तो स्कूल ना भेजकर 2 घण्टे का और आराम ले लिया लेकिन हमे तो ऑफिस जाना ही है और समय से जाना है क्यो की आप रात को देरी से आये आप थके हुए है या कुछ भी हो लेकिन ग्राहक क्यो आपकी बात को समझेगा उसे तो 10:30 पर आपकी उपस्थिति चाहिए ही चाहिए और बस मन को समझाया और बची हुई हिम्मत जुटा कर फिर निकल पड़े अपनी अनवरत सेवाएँ देने के लिए!

"हम इंसान बन चुके है अब मशीन नही रहे क्यो की मशीन तो ज्यादा चले तो थककर रुक जाएगी लेकिन इंसान को रुकने का अधिकार नही है"

"एक बैंकर की कलम से"

Comments

Popular posts from this blog

Fwd: Fw: complete vs. finished

Written by a 90 year old...the 45 lessons life taught me.

Fwd: Fw: Fwd: Prayers do nourish!